हर साल विश्व हेपेटाइटिस दिवस पर मैं हेपेटाइटिस बी और सी के बारे में लिखता रहा हूं और यह अकारण नहीं था । वास्तव में दुनिया के सभी लिवर विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि हमें इन 2 वायरस के बारे में लोगों और चिकित्साबिरादरी को शिक्षित करने की आवश्यकता है क्योंकि वे अधिक भयानक है, शरीर में घर कर जाते है और सिरोसिस का कारण बन सकते है, इसके अलावा यह है कि इनका संक्रमण रक्त और रक्त उत्पादों, यौन संपर्क और ऑपरेशन व टैटू बनवाने से होता है, इन संक्रमणों के बारे में अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इनमें से अधिकांश कई वर्षों तक शांत बने रहते हैं, इसलिए हम जो देखते हैं वह केवल हिमशैल का सिरा है। हमारे आसपास बहुत से ऐसे लोग है जो संक्रमित है लेकिन वे खुद नहीं जानते है और चूंकि हम भी नही जानते है इसलिए हम समुदाय में आगे फैलाव को रोकने के लिए उपाय नहीं कर सकते हैं। इसलिए इस साल डब्ल्यूएचओ नेअब समय आ गया है कार्यवाही करने कानारा जारी किया, जिसका निश्चित रूप से दूरगामी लाभ होगा। इसके अंतर्गत हर छोटे कस्बे व गांव में हेपेटाईटिस संबंधी जांच की जाएगी एवं टीकाकरण किया जायेगा। तो यह हुई बात हेपिटाइटिस बी और सी की। 

आज इस विश्व हेपेटाइटिस दिवस पर मैं एक बार फिर हेपेटाइटिस की एक और किस्म के बारे में बात करना चाहता हूँ जिसे बहुत गंभीर नहीं माना जाता हैहाँ यह हेपेटाइटिसहै। वास्तव में हम इसे दशकों से जानते है और यह भी जानते है कि यह मौखिक मार्ग से फैलता है जिसका अर्थ है दूषित हाथ, भोजन या पानी और यह रोग आमतौर पर हल्का होता है और जल्दी ठीक हो जाता है। हम यह भी जानते थे कि हमारे देश में अधिकांश लोगों को बचपन में ही प्रत्यक्ष या छिपा हुआ संक्रमण हो जाता है और 15 वर्ष की आयु तक अधिकांश भारतीय आजीवन प्रतिरक्षा प्राप्त कर लेते हैं। इसलिए एक सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम कभी नहीं लिया गया था, हालांकि हमारे पास हेपेटाइटिस ए के लिए काफी प्रभावी टीका उपलब्ध है 

यह भी ज्ञात था कि जब एक वयस्क जो बचपन में हेपेटाइटिस ए संक्रमण से बच गया था, बाद की उम्र में इससे पीड़ित होता है, तो यह बीमारी इतनी हल्की नहीं होती है। वयस्क अक्सर लंबे समय तक पीलिया से ग्रसित । रहते हैं और बहुत सारे काम्पलिकेशन्स यहां तक कि लिवर फेल भी हो सकता है। 

इन दिनों 2 से 3 वर्षों से 10 से 25 वर्ष के अधिकांश युवा जो पीलिया के साथ आ रहे है, उनमें हेपेटाइटिस ए ही पाया जा रहा है, न केवल यह अधिक आम हो गया है बल्कि, यह अधिक लंबा और गंभीर भी हो गया है। हमारे कई रोगियों का लीवर खराब हो गया था और उन्हें आईसीयू देखभाल और लंबे समय तक रहने की आवश्यकता पड़ी, और कईयों के लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ी व कईयों की मृत्यु भी हुई  तो यह समझने की बात है कि हेपेटाइटिस ए का बचपन में ना होना और ज्यादा सीरियस होना दोनों शायद हमारे देश में बेहतर स्वच्छता के कारण हैं और अब हम पश्चिमी दुनिया के पैटर्न की तरफ जा रहे हैं। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु सामने लाता है कि हमें इस बीमारी की रोकथाम के तरीकों को तेज करना है और इस संबंध में सबसे प्रभावी उपाय हाथ की स्वच्छता और सुरक्षित भोजन और पानी का चयन करना है। साथ ही हमें हेपेटाइटिस ए के लिए सार्वभौमिक टीकाकरण पर भी विचार करना चाहिए जिसके लिए प्रभावी टीका पहले से ही उपलब्ध है। हालांकि 95.98 व रोगियों को हल्की बीमारी है पर श्रम दिवसों का नुकसान भी उतना ही महत्वपूर्ण है। और 2-5 व मरीज सिरीयस हो जाते है तो यह भी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर एक बड़ा बोझ होगा इसके अलावा रोगी को व्यक्तिगत और वित्तीय नुकसान जो होता है वो अलग है । मैं दृढ़ता से महसूस करता हूं कि जो लोग खर्च कर सकते हैं उन्हें जीवन के पहले वर्ष के दौरान अपने बच्चों का हेपेटाइटिस ए टीकाकरण करवाना चाहिए। दो वर्ष पूर्व इसी कॉलम में मैंने लिखा था कि हेपेटाइटिस ए का वैक्सीन बचपन में ही अनिवार्य करना चाहिए। एक बार फिर मैं ICMR, अन्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेन्सियों व सरकार से कहना चाहुँगा कि इस बारे में अध्यन करके यह सार्वभौमिक टीकाकरण अभियान शुरू हो जैसे कि अमेरिका, इजराइल, इटली व अन्य कई देशों में किया जाता है।  मुझे पता है कि इसे सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करना बहुत चुनौतीपूर्ण होगा लेकिन इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, इस दिशा में एक कदम आवश्य उठाया जाना चाहिए।